जब भी तुम्हारे पास समय हो, बस मौन में निढाल हो जाओ, और मेरा अभिप्राय ठीक यही है-निढाल, मानो कि तुम एक छोटे बच्चे हो अपनी मा के गर्भ में
फर्श पर अपने घुटनों के बल बैठ जाओ और धीरे-धीरे अपना सिर भी फर्श पर लगाना चाहोगे, तब सिर फर्श पर लगा देना। गर्भासन में बैठ जाना जैसे बच्चा अपनी मां के गर्भ में अपने अंगों को सिमटाकर लेटा होता है। और शीघ्र ही तुम पाओगे कि मौन उतर रहा है, वही मौन जो मां के गर्भ में था।
अपने बिस्तर में बैठे हुए कंबल के नीचे सिमट जायें। और वहीं रहें...बिलकुल स्थिर, निष्क्रिय। कई बार कुछ विचार आयेंगे- उन्हें गुजर जाने दें, उदासीन रहें, बिना लिप्त हुए। यदि वे आते हैं तो शुभ, नहीं आते तो शुभ। संघर्ष ना करें, उन्हें भगायें नहीं। यदि तुम संघर्ष करते हो तो तुम बेचैन हो जाओगे। यदि तुम उन्हें भगाते हो तो वे अड़ जाते हैं, तुम उन्हें चाहते नहीं और वे जाने को लेकर अड़ जाते हैं।
बस निश्चिंत रहें; उन्हे परिधि पर रहने दें मानो ट्रैफिक का शोर हो।
और यह सचमुच ट्रैफिक का शोर है- एक दूसरे में विचार प्रवाहित करती हुई मस्तिष्क की लाखों कोशिकाएं, बहती ऊर्जा और एक सैल से दूसरे सैल पर छलांग लगाती बिजली। यह किसी भी महान यंत्र की घरघर्राहट से कम नहीं। तो इसे होने दें। इसके प्रति बिलकुल उदासीन हो जायें, इनसे तुम्हारा कुछ लेना देना नहीं, यह तुम्हारी समस्या नहीं- किसी और की भले हो लेकिन तुम्हारी नहीं। तुम्हें इससे क्या लेना देना?
और तुम हैरान हो जाओगे: ऐसे क्षण आयेंगे जब शोर समाप्त हो जायेगा, बिलकुल समाप्त हो जायेगा, और तुम अकेले रह जाओगे। उस अकेलेपन में तुम मौन अनुभव करोगे। गर्भासन- बिलकुल जैसे तुम अपनी मां के गर्भ में हो और अधिक स्थान न होने के कारण सिमट जाते हो, और ठंड है इसलिये तुम कंबल ओढ़ लेते हो। यह वस्तुत: एक गर्भ बन जायेगा, ऊष्मा और अंधेरे से भरा, और तुम स्वयं को बहुत छोटा महसूस करोगे। यह तुम्हें एक अंतर्दृष्टि देगा अपने भीतर देखने की।