ध्यान : गर्भ की शांति पायें

जब भी तुम्हारे पास समय हो, बस मौन में निढाल हो जाओ, और मेरा अभिप्राय ठीक यही है-निढाल, मानो कि तुम एक छोटे बच्चे हो अपनी मा के गर्भ में

 

फर्श पर अपने घुटनों के बल बैठ जाओ और धीरे-धीरे अपना सिर भी फर्श पर लगाना चाहोगे, तब सिर फर्श पर लगा देना। गर्भासन में बैठ जाना जैसे बच्चा अपनी मां के गर्भ में अपने अंगों को सिमटाकर लेटा होता है। और शीघ्र ही तुम पाओगे कि मौन उतर रहा है, वही मौन जो मां के गर्भ में था।

 

ध्यान : काम ऊर्जा से मुक्ति

जब काम ऊर्जा वैसी नहीं बह रही जैसी बहनी चाहिए, तो यह बहुत सी समस्याएं पैदा करती है। यदि काम ऊर्जा बिल्कुल सही बह रही है तब हर चीज सही गूंजेगी, हर चीज लयबद्ध रहती है। तब तुम सरलता से सुर में हो और एक किस्म का तारतम्य होगा। एक बार काम ऊर्जा कहीं अटक जाती है तो सारे शरीर पर प्रभाव होते हैं। और पहले वे दिमाग में आएंगे हैं, क्योंकि सेक्स और दिमाग विपरीत धुरी हैं। 

 

ध्यान : अपनी श्वास का स्मरण रखें

"अगर तुम अपनी सांस पर काबू पा सको तो अपनी भावनाओं पर काबू पा सकोगे। अवचेतन सांस की लय को बदलता रहता है, अत: अगर तुम इस लय के प्रति और उसमें होने वाले सतत बदलाव के बारे में होश से भर जाओगे तो तुम अपनी अवचेतन जड़ों के बारे में, अवचेतन की गतिविधि के बारे में सजग हो जाओगे।"

दि न्यू एल्केमी

 

 1) जब भी स्मरण हो, दिन भर गहरी सांस लो, जोर से नहीं वरन धीमी और गहरी; और शिथिलता अनुभव करो, तनाव नहीं।

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